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ये मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा रचित एक उपन्यास है रूठी रानी
उमादे जैसलमेर के रावल लोनकरन की बेटी थी जो सन् १५८६ में राजगद्दी पर सुशोभित था। बेटी के पैदा होने से पहले तो दिल जरा टूटा मगर जब उसके सौन्दर्य की खबर आयी तो आंसू पुंछ गए। थोड़े ही दिनों में उस लड़की के सौन्दर्य की धूम राजपूताने में मच गयी। सखियां सोचती थीं कि देखें यह युवती किस भाग्यवान को मिलती है। वे उसके आगे देश देश के राजों-महाराजों के गुणों का बखान किया करतीं और उसके जी की थाह लेतीं लेकिन उमादे अपने सौन्दर्य के गर्व से किसी को खयाल में न लाती थी। उसे सिर्फ अपने बाहरी गुणों पर गर्व न था, अपने दिल की मजबूती, हौसले की बुलन्दी और उदारता में भी वह बेजोड़ थी। उसकी आदतें सारी दुनिया से निराली थीं। छुई-मुई की तरह जहाँ किसी ने उंगली दिखायी और यह कुम्हलायी। मां कहती– बेटी, पराये घर जाना है, तुम्हारा निबाह क्योंकर होगा? बाप कहता– बेटा, छोटी-छोटी बातों पर बुरा नहीं मानना चाहिए। पर वह अपनी धुन में किसी की न सुनती थी। सबका जवाब उसके पास खामोशी थी कोई कितना ही भूंके, जब वह किसी बात पर अड़ जाती तो अड़ी ही रहती थी।
आखिर लड़की शादी करने के काबिल हुई। रानी ने रावल से कहा– ‘‘बेखबर कैसे बैठे हो, लड़की सयानी हुई, उसके लिए वर ढूंढ़ों, बेटी के हाथों में मेंहदी रचाओ।’’
ASIN : B0DPRCYCDH
Language : Hindi
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Print length : 50 pages
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