प्रतिज्ञा (उपन्यास): मुंशी प्रेमचंद (Hindi Edition)
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(as of Dec 15, 2024 02:03:26 UTC – Details)
ये मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित एक उपन्यास है प्रतिज्ञा
काशी के आर्य-मंदिर में पंडित अमरनाथ का व्याख्यान हो रहा था। श्रोता लोग मंत्रमुग्ध से बैठे सुन रहे थे। प्रोफेसर दाननाथ ने आगे खिसक कर अपने मित्र बाबू अमृतराय के कान में कहा – ‘रटी हुई स्पीच है।’ अमृतराय स्पीच सुनने में तल्लीन थे। कुछ जवाब न दिया।
अमृतराय ने फिर भी कुछ जवाब न दिया। एक क्षण के बाद दाननाथ ने फिर कहा – ‘भाई, मैं तो जाता हूँ।’
दाननाथ – ‘तुम कब तक बैठे रहोगे?’
दाननाथ – ‘बस, हो निरे बुद्धू, अरे स्पीच में है क्या? रट कर सुना रहा है।’
दाननाथ – ‘अजी घंटों बोलेगा। राँड़ का चर्खा है या स्पीच है।’
दाननाथ – ‘पछताओगे। आज प्रेमा भी खेल में आएगी।’
दाननाथ – ‘मुझे क्या गरज पड़ी है जो आपकी तरफ से क्षमा माँगता फिरूँ।’
दाननाथ इतनी आसानी से छोड़ने वाले आदमी न थे। घड़ी निकाल कर देखी, पहलू बदला और अमरनाथ की ओर देखने लगे। उनका ध्यान व्याख्यान पर नहीं, पंडित जी की दाढ़ी पर था। उसके हिलने में उन्हें बड़ा आनंद आया। बोलने का मर्ज था। ऐसा मनोरंजक दृश्य देख कर वह चुप कैसे रहते? अमृतराय का हाथ दबा कर कहा – ‘आपकी दाढ़ी कितनी सफाई से हिल रही है, जी चाहता है, नोच कर रख लूँ।’
ASIN : B0DPL98N3T
Language : Hindi
File size : 636 KB
Simultaneous device usage : Unlimited
Text-to-Speech : Enabled
Screen Reader : Supported
Enhanced typesetting : Enabled
Word Wise : Not Enabled
Print length : 92 pages
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